रामराज्य दो : मदकची का पुत्र गंजेड़ी तो गंजेड़ी का..
- अजय शुक्ल
लोग गंजहे आदमी को मुंह बाए सुन रहे थे। गंजहा बोला, "रामराज्य में थे प्रेम अदीब, अमीरबाई कर्नाटकी और तुम्हारी काजोल की नानी शोभना समर्थ। सन साठ में देखी थी, मैजेस्टिक टॉकीज़ जो बिरहाना रोड में है। फ़िल्म तो बहुत पुरानी थी। बाप जी खासतौर पर मुझे दिखाने ले गए थे। बोले, चलो रामचन्द्र जी के दर्शन कर दें तुमको। वे चाहते थे कि मैं राम जैसा बनूं।"
झम्मन की बात सुनकर एक समवेत ठहाका लगा। हंसने वालों में वह भी था जो झम्मन से गांजा खरीदा करता था। बोला, बाप बनाना चाहते थे राम और बन गया गंजेड़ी।
"राम दशरथ के घर पैदा होते हैं" झम्मन नाराज़ होकर बोला, "मेरा बाप पीता था मदक...अब देखना है कि गांजा पीने वालों के यहां कौन पैदा होता है।"
झम्मन ने बदला ले लिया था। वह रिक्शे पर पेडल मारते हुए धुंधलके में खो गया।
रामराज्य फिर अधर में लटक गया। पानखोरों की इस महफ़िल में रामराज्य पर चरचा तो दूर सवाल पूछने की लियाक़त भी किसी के पास न थी। 'बच्चाबच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का' और ऐसे ही नारों के साथ इन सबका बचपन बीत था। तुलसी की मानस से इनका रिश्ता न था। वह तो पूजाघर में रखी पूजा की वस्तु बन चुकी थी। और तो और, परनिंदा में रस लेने वाले इस लेखक की हालत ऐसी न थी कि रामराज्य पर चरचा कर सके। इतना ज़रूर पता था कि गोस्वामी जी ने उत्तरकांड में रामराज्य की विशद व्याख्या की है।
"परेशान न हों" मैंने पानखोरों से कहा, कल पार्क में मिलना। मैं रामचरितमानस में से रामराज्य खोजूंगा... मास्क बांध कर आना और दो ग़ज़ की दूरी का ख़्याल रखना।"
(राम ने अपनी आलोचना का अधिकार दे रखा था: पढ़ें कल)
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