- श्रीनाथ प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग केंद्र और केंद्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद का शोध
जब रोजमर्रा के कामकाज निपटने में दर्द से परेशानी होने लगे। इससे राहत के लिए दर्द निवारक दवाओं पर निर्भरता बढ़ जाए तो समझ लीजिए बढ़ती उम्र के साथ हड्डियां कमजोर होने लगी हैं। भोजन में पोषक तत्वों की कमी जोड़ों के दर्द के रूप में बीमारी सामने आने लगी है। ऐसे में योग एवं प्राकृतिक जीवनचर्या से दर्द से छुटकारा संभव है। इसकी पुष्टि केंद्रीय आयुष मंत्रालय के सहयोग से कानपुर के श्रीनाथ प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग केंद्र (भगवतदास घाट) के शोध में हुई है।
केंद्रीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा अनुसंधान परिषद, केंद्रीय आयुष मंत्रालय के योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा विधियों का रिमेटाइड आर्थराइटिस, आस्टियो आर्थराइटिस एवं गाउट (गठिया) पीडि़तों पर प्रभाव के लिए श्रीनाथ प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग केंद्र के मुख्य चिकित्सक डॉ. रविंद्र पोरवाल ने रिसर्च प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू किया। इसमें डॉ. रजनी पोरवाल भी सहयोगी रहीं। इसके लिए इन बीमारियों से पीडि़तों के 120-120 मरीजों के तीन ग्रुप बनाए। अध्ययन से पहले अंतराष्ट्रीय डायग्नोस्टिक मानकों के हिसाब से मरीजों की पैथाॅलाजिकल एवं रेडियोलाजिकल जांचें कराई। दर्द की तीव्रता जानने के लिए न्यूरोलाजिकल परीक्षण में मरीजों के चाल की गति, नव्स का प्रभाव (रिफ्लैक्सेस) इंद्रियबोध (सेंसेशन), संतुलन (बाईलेंस) एवं समन्वय (कोआर्डिनेशन) का चेकअप किया गया। उसके बाद तीनों ग्रुप के मरीजों को 60-60 की संख्या में बांट दिया गया। इसमें से 60 मरीजों को ऐसे ही छोड़ दिया, जो दर्द निवारक व अन्य दवाएं खाते रहे, जबकि दूसरे 60 मरीजों की सभी दवाएं बंद कर दी। उन्हें पहले 30 दिन तक यौगिक क्रियाएं, उसके बाद 60 दिन तक यौगिक क्रियाएं व प्राकृतिक क्रियाएं भी कराईं। उसके बाद 90-120 दिन तक यौगिक क्रियाएं, प्राकृतिक क्रियाएं व प्राकृतिक आहार (80 फीसद क्षारीय व 20 फीसद अम्लीय भोजन) पर रखा।
इतने अंतराल में कराई जांच
हर माह जांच कराई गई। पहले माह बदलाव नहीं दिखा। तीन माह बाद बेहतर परिणाम दिखने लगा। चार माह तक कोई साइड इफेक्ट नहीं दिखा। चार माह बाद उन्हें निगरानी पर रखा गया। 180 दिन बाद कराई जांच और 365 दिन की निगरानी अवधि में पूर्ण आराम मिल चुका था।
सूक्ष्म यौगिक क्रियाएं : ग्रीवा, करतल, भुजवल्ली, पूर्णभुजा, शक्ति विकास क्रियाएं।
आसन : भुजंग आसन, नौकासन, शलभासन, सर्वांगासन, कूर्मासन, पक्षी आसन।
प्राकृतिक क्रियाएं : मिट्टी लेपन, उपवास, जल चिकित्सा, मालिश चिकित्सा, लाल मिर्च स्वेदन।
प्राकृतिक चिकित्सा : गेंहू के जवारे का रस, बेलपत्र का रस, शीशम की पत्ती का रस, गिलोय का रस, सूजन वाले अंगों में लाल मिर्च की भाप।
शोध में तीन माह बाद 43.85 फीसद मरीजों को लाभ मिला। इसमें रिमेटाइड आर्थराइडिट के मरीजों में 47.62 फीसद, आस्टियो आर्थराइटिस के मरीजों में 42 फीसद व गठिया में 42.11 फीसद को फायदा हुआ। वहीं 38.46 फीसद मरीज ऐसे थे, जो दर्द की वजह से चल नहीं पाते थे। वह दौडऩे लगे। आयुष मंत्रालय ने इस अध्ययन पर एम्स के पैनल ने भी मुहर लगाई है।
- डॉ. रविंद्र पोरवाल, मुख्य अनुसंधानकर्ता।
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