गंगा किनारे गॉल ब्लाडर कैंसर सर्वाधिक

0

अध्ययन में कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी से सर्वाधिक मामले सामने आए 

गंगा के दायें व बायें किनारे बढ़ते प्रदूषण को विशेषज्ञ प्रमुख मान रहे कारण 

प्रारब्ध रिसर्च डेस्क

गंगा किनारे बसे शहरों में सर्वाधिक मामले गॉल ब्लाडर (पित्त की थैली) के कैंसर के रिपोर्ट हो रहे हैं। जेके कैंसर संस्थान में हुए अध्ययन में पता चला कि कानपुर, प्रयागराज और वाराणसी से सर्वाधिक मामले सामने आए हैं। इसकी वजह जानने को अध्ययन कर रहे विशेषज्ञों के मुताबिक शुरूआती आंकड़े गंगा में बढ़ते प्रदूषण को प्रमुख कारण मान रहे हैं।
गोमुख से लेकर बंगाल की खाड़ी तक गंगा हमारी लाइफ लाइन हैं। उत्तर भारत के प्रमुख शहर तट पर बसे हैं। फिर भी गंगा को प्रदूषित कर रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ नॉन कम्यूनिकेबल डिसीज, बंगलूरू की रिपोर्ट में भी गंगा के तटीय क्षेत्र में गॉल ब्लाडर के मामले सर्वाधिक रिपोर्ट हो रहे हैं।  
वहीं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के हास्पिटल बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (एचबीसीआर) से वर्ष 2015 में सूबे का पहले सेंटर के रूप में जेके कैंसर संस्थान जुड़ा था। एचबीसीआर को देश के प्रमुख कैंसर संस्थान विभिन्न प्रकार के कैंसर मरीजों के आंकड़े भेजते हैं। यहां के विशेषज्ञ ऑनलाइन मानिटरिंग के दौरान जेके कैंसर संस्थान से गॉल ब्लॉडर के सर्वाधिक केस रिपोर्ट होने से हैरान हो गए। संस्थान के डॉ. शरद सिंह से संपर्क कर वजह जानने के प्रयास किए। इसके बाद गंभीरता से लेते हुए अध्ययन शुरू हुआ।

गंगा किनारे का पांच किमी क्षेत्र
डॉ. सिंह ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर व कई प्रमुख संस्थानों के साथ मिलकर अध्ययन शुरू किया। जुटाए गए आंकड़ों में पता चला ईरान से लेकर थाइलैंड तक 700 किलोमीटर चौड़ाई की पट्टी में गॉल ब्लॉडर कैंसर के मामले अधिक पाए जा रहे हैं। इसमें गंगा के दायें व बायें किनारे की 4-5 किलोमीटर की चौड़ी पट्टी आती है, जहां से गॉल ब्लॉडर के केस रिपोर्ट हो रहे हैं। इसकी वजह जानने को प्रोजेक्ट तैयार कर भेजा गया है जो लंबित है।

क्लीनिक अध्ययन ने चौकाया
जेके कैंसर संस्थान की ओपीडी में रोज औसतन 150-200 मरीज आते हैं। इनमें कैंसर के नये मरीज 50-60 होते हैं, जिसमें 10-12 मरीज गॉल ब्लाडर कैंसर के होते हैं। डॉ. सिंह ने पाया कि संस्थान में वाराणसी, बलिया, इलाहाबाद, कानपुर, उन्नाव एवं फर्रुखाबाद के अधिक थे, जिनमें बीमारी पाई गई।

बीमारी की स्पष्ट नहीं वजह
डॉ. सिंह बताते हैं कि गॉल ब्लॉडर में कैंसर की स्पष्ट वजह अभी तक सामने नहीं है। प्रारंभिक अध्ययन से यह पता चलता है कि गंगा में घुलित हैवी मेटल में जिंक, लैड, कॉपर, निकिल, आर्सेनिक, सिलेनियम व कैडमियम है। इसके अलावा गंगा की सहायक नदी रामगंगा के पानी में घुलित पीतल के काम का प्रदूषण एवं ई-कचरा, डाई का उत्सर्जन, टनरियों के डिस्चार्ज में घुलित क्रोमियम है। यह केमिकल पानी के साथ शरीर में जा रहे हैं। इसके अलावा गॉल ब्लॉडर में पथरी (कोली लिथियासिस) के 10 में से नौ मरीजों में आगे चलकर कैंसर पाया गया। हालांकि पथरी होने की ठोस वजह का अभी पता नहीं चल सका है।

संस्थान आए नए कैंसर मरीज   
1200 मरीज वर्ष 2017
950 मरीज वर्ष 2016
808 मरीज वर्ष 2015
705 मरीज वर्ष 2014

मुख कैंसर के बाद गॉल ब्लॉडर के केस सर्वाधिक रिपोर्ट होत हैं। इसका स्पष्ट लक्षण न होने से काफी विलंब से आते हैं। ऐसे में कैंसर लिवर, छोटी आंत एवं पैंक्रियाज तक फैल चुका होता है। ऐसे मरीजों की जान बचाना मुश्किल होता है।
- डॉ. एमपी मिश्रापूर्व निदेशक, जेके कैंसर संस्थान।

गॉल ब्लाडर का कैंसर महामारी का रूप ले रहा है। अब युवावस्था में भी लोग चपेट में आ रहे हैं। इसलिए कैंसर की वजह जानना जरूरी है। इस पर हुए अध्ययन को आगे बढ़ाने की जरूरत है, ताकि मरीजों को लाभ मिल सके।
- डॉ. शरद सिंह, नोडल अफसर, एचबीसीआर, जेके कैंसर संस्थान  वर्तमान तैनाती कैंसर सुपरस्पेशियलिटी कैंसर इंस्टीट्यूट, लखनऊ

Post a Comment

0 Comments

if you have any doubt,pl let me know

Post a Comment (0)
To Top