सर्जरी करते प्रो. परवेज खान। |
प्रारब्ध रिसर्च डेस्क, लखनऊ
आपकी आंखों में अगर नासूर है तो घबराएं नहीं। अब बिना चीरा के दो मिनट में इसका इलाज संभव है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष ने नई तकनीक ईजाद की है। ऑपरेशन की अपेक्षा यह तकनीक राहत प्रदान करने वाली है। इस तकनीक से अब तक कई मरीजों को राहत प्रदान की जा चुकी है। उन्होंने इस शोध को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशन के लिए भी भेजा है।
आंख से गले तक आने वाली नली नेजो लैक्ट्राइम डक प्रदूषण, धूल-धुआं और गंदगी की वजह से चोक (ब्लॉक ) हो जाती है। इस नली के माध्यम से आंखों से निकलने वाले आंसू सीधे गले तक चले जाते हैं लेकिन जब नली ब्लॉक हो जाती है तो आंखों से लगातार आंसू बहते रहते हैं। समस्या बढ़ने पर आंखों में कीचड़ आने लगता है, जिससे नासूर की समस्या होती है। लंबे समय तक नासूर रहने से आंखों में मवाद पड़ जाता है। इसका इलाज अब तक ऑपरेशन से ही संभव था। ऑपरेशन में आंख और नाक के बीच की हड्डी काटकर रास्ता बनाया जाता था, जिसमें ढाई से तीन घंटे तक सर्जरी चलती थी। खून अधिक निकलने के साथ ही मरीजों को तीन से चार दिन तक अस्पताल में रुकना पड़ता था। ऑपरेशन की इस प्रक्रिया को डैक्ट्रो सिस्टो राइनोस्टोमी (डीसीआर) कहते हैं।
इस जटिल सर्जिकल प्रक्रिया से मरीजों को राहत प्रदान करने के लिए मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विभागाध्यक्ष लगातार शोध कर रहे थे, जिसमें उनको कामयाबी मिली।
ऐसे मिलेगी राहत
नई तकनीक में कॉर्निया की सर्जरी में इस्तेमाल होने वाली एंडो काॅट्री का प्रयोग किया जाता है। इसके जरिए चोक नली के बगल से ड्रिल करते हुए नया रास्ता बनाया जाता है। अब तक वह इस नई तकनीक से 25 मरीजों का इलाज कर चुके हैं। इसमें मात्र दो मिनट लगते हैं। उसी दिन मरीज को घर भेज दिया जाता है।
महिलाओं को अधिक समस्या
नासूर की समस्या गंदगी की वजह से होती है, जो आंखों की सफाई के प्रति जागरूक नहीं है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं अधिक पीड़ित होती हैं।
आंख-नाक से गले तक जाने वाली नली, जिसे नेजो लैक्ट्राइम डक्ट कहते हैं, में ब्लॉकेज से नासूर होता है। इसके इलाज की नई तकनीक में एंडो काॅट्री से टिश्यू बर्न करने के साथ ही ड्रिल करते हुए नया रास्ता बनाते हैं। इसमें महज दो मिनट लगते हैं। इसमें चीरा भी नहीं लगाना पड़ता है।
- प्रो. परवेज खान, नेत्र रोग विभागाध्यक्ष, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
अच्छी जानकारी
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