डिप्थीरिया से जंग में 'सीरम का हथियार'

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- यूनीसेफ व डब्ल्यूएचओ के सहयोग से घनी आबादी के जिलों में कराएंगे उपलब्ध 

प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो

डिप्थीरिया की बीमारी फिर से सिर उठा रही है। यही वजह है कि हैलट के बाल रोग चिकित्सालय एवं संक्रामक रोग अस्पताल (आइडीएच) में डिप्थीरिया पीड़ित बच्चे इलाज को आते हैं। इनकी जान बचाने को केंद्र सरकार गंभीर है। यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से घनी आबादी के जिलों में एंटी डिप्थीरी सीरम उपलब्ध कराने पर तेजी से काम कर रही है, जो डिप्थीरिया से जंग के लिए हथियार बनेगा। इसे पीड़ित बच्चों को 24 घंटे के भीतर लगाने पर जान बचाना संभव होगा।

बच्चों में हार्ट व किडनी फेल का खतरा 

डिप्थीरिया के बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर गले में जाली से बन जाती है। इसका बैक्टीरिया विशेष प्रकार का रसायन छोड़ता है, जो रक्त के साथ शरीर में फैल जाता है। ऐसे में पीड़ित बच्चों में हार्ट फेल और किडनी फेल होने का खतरा बढ़ जाता है। 

सरकारी अस्पतालों में नहीं सीरम

जिला अस्पताल, संक्रामक रोग अस्पताल एवं जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग अस्पताल में एंटी डिप्थीरी सीरम उपलब्ध नहीं है। इसलिए अभी बच्चों की जान बचाना संभव नहीं है।

40 फीसद पहली बूस्टर डोज से वंचित

बच्चे के जन्म के छठे, दसवें और 14वें सप्ताह में पेंटावेलेंट के साथ डिप्थीरिया की वैक्सीन लगती है। यूनीसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों के परिजनों की लापरवाही या अज्ञानता की वजह से 40 फीसद बच्चों को 16 से 24 माह पर पहली बूस्टर डोज नहीं लग पाती है। 

50 फीसद को नहीं लगती दूसरी बूस्टर डोज

पांच साल की उम्र पर दूसरी बूस्टर डोज से 50 फीसद बच्चों को नहीं लग पाती है। यूपी में 5-10 वर्ष की उम्र के सिर्फ 53 फीसद बच्चों को ही वैक्सीन लग सकी। जिससे उनमें प्रतिरोधक क्षमता नहीं विकसित हो सकी। इसलिए डिप्थीरिया की चपेट में आ रहे हैं। 

ये लक्षण हों तो सावधान

गले में सूजन, आवाज में बदलाव, गले में सफेद जाली जैसा बनना, कुछ भी खाने-पीने पर नाक से निकलना, सांस लेने में तकलीफ एवं बुखार।

डिप्थीरिया : कोरनी बैक्टीरियम डिप्थीरी के संक्रमण से डिप्थीरिया की बीमारी होती है। इसकी चपेट में दो वर्ष तक के बच्चे आते हैं। इसमें गले की ग्रंथियां फूल जाती हैं, जिसे बुलनेक भी कहते हैं। 

विशेषज्ञों की राय

अभी एंटी डिप्थीरी सीरम अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। बच्चों की जान बचाने के लिए मजबूरी में परिजनों से बाहर से मंगाना पड़ता है। 24 घंटे के अंदर लगाने पर 90 फीसद तक जान बचाना संभव है। 

- डॉ. अनूप शुक्ला, सीएमएस, संक्रामक रोग अस्पताल। 

घनी आबादी वाले शहर डिप्थीरिया के लिए हाई रिस्क क्षेत्र के रूप में चिह्नित हैं। अभी टीकाकरण में टिटनेस टॉक्साइड (टीटी) वैक्सीन है। इसे एडल्ट डोज डिप्थीरिया एवं टिटनेस टॉक्साइड (डीटी) में बदलने की तैयारी है, जो अतिरिक्त डोज के रूप में 10 वर्ष और 16 वर्ष के बच्चों को लगाई जाएगी।

- डॉ. यशवंत राव, विभागाध्यक्ष, बाल रोग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।

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