मां का मनोविज्ञान"

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मेरे इस दुनिया में प्रवेश से लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व ,मेरी माँ ने अपने चार बच्चों को केवल 10 दिन के भीतर एक के बाद एक करके खो दिया था। विभिन्न आयु के तीन प्यारे से बेटे और एक 10 वर्षीय बेटी। 
मेरा जन्म किन हालात में हुआ होगा मुझे अपने गर्भ में रखे मां किन मनोवैज्ञानिक जटिलताओं से रोज़ रोज़ पल पल गुज़रती होगी ,माँ की मानसिक स्थिति का केवल अंदाज़ ही लगाया जा सकता है।
जैसे जैसे समझ आती गयी तो माँ के कुछ अटपटे से ,दूसरी माँओं से अलग -अलग से व्यवहार का आभास तो होता पर कारण ना समझ में आता तो मैं केवल उसको मां के अतुलनीय,असीम प्यार समझकर सहज ही रहता। हद तो तब हो जाती तब माँ अपने 7 वर्ष की आयु के बालक को रात को अपने पेट पर लिटाकर ,सीने से लगाकर दोनों बाहों में भरकर सुलाती।
 घर में ,अपने जन्म से पूर्व हुई इस त्रासदी का सही सही पता तो 11--12 वर्ष की आयु तक पहुंचते -पहुंचते हो गया था। लेकिन माँ के उस प्रेम के मनोविज्ञान को ,उसकी जटिलताओं को समझने में तो समय लगा। बल्कि सालों लगे, जब मनोविज्ञान को एक विषय के रूप में पढ़ा तब समझ पाया के उनके उस समय के व्यवहार का क्या मतलब था। 
अभी भी ,यह में कह ही तो रहा हूँ ,कि समझ पाया लेकिन पूर्णतय समझ पाया ,इसका कोई दावा नही । शायद कोई भी ना कर सके।
लड़कियों के साथ यह बिल्कुल अलग तरह का होता है। घर -मायका ,उनका बेटी के रूप में अस्तित्व, माँ के साथ जुड़ा है ,माँ नही तो कुछ नही। यह बात में एक मर्द होकर भी अच्छी तरह समझता हूं बाप हूँ ना बेटियों का।



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