- जीएसवीएम के एसएनसीयू में 20 फीसद नवजात पर फस्र्ट व सेकेंड लाइन एंटीबायोटिक बेअसर
- प्रसव के दौरान लेबर रूम व आॅपरेशन थियेटर में प्रोटोकॉल का पालन नहीं होने से हो रही समस्या
प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो
गर्भवती के खानपान में पोषण तत्वों की कमी और एंटीबायोटिक के अधिक प्रयोग का दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ रहा है। नवजात कई एंटीबायोटिक के लिए रेसिस्टेंट होकर पैदा हो रहे हैं। पैदा होने के 24 घंटे के अंदर जटिलता होने पर एंटीबायोटिक बेअसर साबित हो रही हैं। इसमें चौंकाने वाले तथ्य यह हैं कि जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के बाल रोग के सिक एंड न्यू बॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में भर्ती होने वाले 20 फीसद से अधिक नवजात फस्र्ट और सेकेंड लाइन की एंटीबायोटिक से रेसिस्टेंट पाए जा रहे हैं। मजबूरी में उनका इलाज थर्ड लाइन दवाओं से किया जा रहा है।
यह हैं कारण
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और हेल्थ सेंटर में सुरक्षित प्रसव के इंतजाम नहीं हैं। यही हाल छोटे नर्सिंग होम का है। ग्रामीण क्षेत्रों में छोलाछाप भी सक्रिय हैं। उनके यहां लेबर रूम में न सफाई और न स्ट्रेलाइजेशन की व्यवस्था है। प्रसव टेबिल और ओटी टेबिल भी गंदी रहती है। वहां अप्रशिक्षित कर्मचारी प्रसव कराते हैं। घरों में भी दाई गर्भवती के प्रसव में साफ-सफाई का ध्यान नहीं देती हैं। नवजात की नाल काटने में भी गंदे ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल किया जाता है। प्रसव के बाद नवजात को पुराने एवं गंदे कपड़े में लेने से संक्रमण का खतरा रहता है।
गर्भवती के इलाज में लापरवाही
गर्भवती के बच्चेदानी में इंफेक्शन से गर्भस्थ शिशु को भी खतरा रहता है। गर्भवती के उठने-बैठने या चलने-फिरने में लापरवाही से वाटर डिस्चार्ज शुरू हो जाता है। इलाज न कराने से संक्रमण फैलने से गर्भस्थ शिशु भी प्रभावित होता है। मां के संक्रमण से नवजात के अर्ली आनसेट सेप्सिस (सेप्टीसीमिया) से संक्रमित हो जाते हैं। इनमें 24 घंटे के अंदर असर दिखने लगता है।
गंभीर बच्चे इलाज को हैं आते
ऐसे बच्चे गंभीर स्थित में इलाज के लिए कानपुर के लाल लाजपत राय चिकित्सालय यानी हैलट के बाल रोग चिकित्सालय में इलाज के लिए आते हैं। उन बच्चों को मैनेज करने के लिए सिक एंड न्यू बार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में भर्ती किया जाता है। उनके शुरूआती इलाज में एंटीबायोटिक असर नहीं करती हैं। उनके ब्लड एवं यूरीन की कल्चर जांच मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की लैब में कराई जाती है।
इन बैक्टीरिया पर फस्र्ट व सेकेंड लाइन की एंटीबायोटिक बेअसर
ई-कोलाई, क्लैपसिएला, स्यूडोमोनास और क्रिस्टल वायोलेट (ग्राम पॉजीटिव बैक्टीरिया) रेसिस्टेंट मिले।
एक्सपर्ट कमेंट्स
लेबर रूम एवं ऑपरेशन थियेटर में गंदगी और स्ट्रेलाइजेशन न हाना। पूरे प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना। गर्भवती का प्रसव से पहले ठीक ढंग से प्राइवेट पार्ट साफ न करना। गंदे हाथ से प्रसव कराना। हाथ में ग्लब्स तक न पहनना है। पैदा होने के तुरंत बाद मां का दूध न मिलाने से उसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं विकसित हो पाती है।
- डॉ. यशवंत राव, विभागाध्यक्ष, बाल रोग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।
if you have any doubt,pl let me know