यह सच है कि, हर बात - हर शख्स पर शक करना और लगातार बिना किसी कारण के शक करते रहना एक तरह से मनोरोग में तब्दील हो जाता है। इस रोग के क्या लक्षण है ,और इलाज क्या है।
शक की बीमारी का इलाज है:
प्राय देखा गया है ,शक की बीमारी किशोरावस्था के बाद से ही शुरू हो जाती है शुरू- शुरू में रोगी को एक दो पर ही शक होता है लेकिन एक दो महीने में वह हर पर शक करने लगता है। परिवार द्वारा शक के विपरीत सच्चाई से रूबरू कराने के सभी प्रयास निरर्थक हो जाते हैं ।इलाज के अभाव में रोगी का पारिवारिक सामाजिक और व्यावसायिक जीवन गंभीर रूप से अस्त व्यस्त हो जाता है।
लक्षण :
-हर समय रोगी को शक होता है कि परिवार जन और सगे-संबंधी रोगी के ख़िलाफ है और उसके प्रति साजिश रच रहे हैं।
-रोगी को हर वक्त महसूस होता है कि सभी उसके बारे में बातें कर रहे हैं और उसे ही घूर रहे हैं।
- रोगी को ऐसा भी लगता है कि जैसे कुछ लोग उसके ऊपर जादू टोना करवा रहे हैं या उसके खाने में कुछ मिलाया जा रहा है।
- रोगी अपने पति या पत्नी के चरित्र व चाल चलन पर बेबुनियाद शक करता है।
- शक के चलते रोगी अपने परिवार लोगों से कटा-कटा रहता है या अपने बचाव में दूसरों के प्रति आक्रामक हो जाता है ,और अक्सर पुलिस को भी बुला लेता है।
कारण:
-मानसिक बीमारी पैरानॉइड ,सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त रोगियों में शक के लक्षण सर्वाधिक देखने को मिलते हैं ।
-पैरानॉइड पर्सनैलिटी डिस्आर्डर रोग से ग्रस्त रोगी स्वभाव से ही शक्की होते हैं यह हमेशा हर बात के पीछे कोई न कोई साजिश या रहस्य तलाशते रहते हैं।
-किसी प्रकार का नशा (शराब ,गांजा, भांग व कोकीन ) करने से भी शक व वहम स्थाई रूप से पैदा हो जाता है।
-डिमेंशिया या पार्किंसन रोग से ग्रसित बुजुर्गों में भी शक की बीमारी प्राय देखी जाती है।
- इन सभी रोगियों के मस्तिष्क में डोपामाइन नामक न्यूरोकेमिकल की कमी के चलते ही शक पैदा होता है।
इलाज:
- मस्तिष्क में रासायनिक कमी के चलते हैं इस रोग के इलाज में दवाओं का प्रमुख स्थान है। दवाओं के सेवन से दो से तीन हफ्ते में ही रोगी का शक दूर हो जाता है और उसकी सोच और व्यवहार में सुधार होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
- रोगी दवाओं को डॉक्टर के कहने पर ही बंद करें। स्व चिकित्सा (सेल्फ मेडिकेशन)ना करें।
- शक के चलते अक्सर रोगी स्वयं को बीमार नहीं मानते, ऐसे में इस इलाज के लिए परिजनों को ही पहल करनी चाहिए।
-इस रोग का एक प्रमुख कारण मादक पदार्थों का सेवन भी है। खास्कर शराब गांजा व कोकीन के सेवन से दूर रहना इस रोग का प्रमुख बचाव है।
गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज जीएसवीएम मनोरोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ गणेश शंकर
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