कड़ाके की ठंड में नहीं, अब गर्मी में लंग्स अटैक

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  •   हले ठंड एवं प्रदूषण बढऩे पर सीओपीडी पीडि़तों को होती थी दिक्कत
  •   मौसम के हिसाब से बीमारियों के समयावधि में हो रहा परिवर्तन
  •   जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के शोध में सामने आए तथ्य

 प्रारब्ध न्यूज ब्यूरो 

कड़ाके की ठंड और प्रदूषण बढऩे पर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के पीडि़तों को लंग्स अटैक पड़ता था। अब यह समय बदल गया है, गर्मी यानी अप्रैल में सीओपीडी पीड़ितों को लंग्स अटैक पड़ रहा है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग में मौसम के हिसाब से बीमारियों के प्रकार में बदलाव पर साल भर चले रिसर्च में इन तथ्यों का पता चला है। पीड़ितों में बीमारी को लेकर हुए बदलाव से विशेषज्ञ भी हैरान हैं। इस रिसर्च के हर पहलू का इंडियन चेस्ट सोसाइटी मंथन करेगी। इन बदलाव का कारण जानने के लिए अगले चरण का रिसर्च कराएगी।

 कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल प्रदेश का प्रतिष्ठित अस्पताल में सांस और फेफड़े से संबंधित सभी बीमारियों का इलाज होता है। इसे सरकार ने ट्यूबरक्युलोसिस (टीबी) तथा मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट (एमडीआर) टीबी से पीड़ित मरीजों के इलाज का नोडल सेंटर भी बना रखा है। जहां प्रदेश भर से ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों से भी पीड़ित इलाज के लिए आते हैं। मौसम के हिसाब से सांस और फेफड़े से जुड़ी बीमारियों के मरीजों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। इसे देखते हुए मेडिकल कॉलेज के रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग के के प्रोफेसर डॉ. सुधीर चौधरी ने डॉ. अशोक यादव के सहयोग से मौसम में बदलाव की वजह से  बीमारियों की समयावधि बदलने पर रिसर्च किया है।

 जुलाई 2018 से वर्ष जून 2019 तक चला शोध 

 मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल में जुलाई 2018 से वर्ष जून 2019 तक आए 1127 मरीजों को शोध में लिया। उनमें यह पाया कि सर्वाधिक 47 फीसद सीओपीडी, उसके बाद 12.5 फीसद वायरल इंफेक्शन (गले में खरास, सांस नली में संक्रमण), 12 फीसद दमा (अस्थमा), फेफड़े की झिल्ली में पानी के 11 फीसद, निमोनिया के पांच फीसद, लंग्स कैंसर के चार फीसद, ब्रांकिथेसिस के 3.5 फीसद, आइएलडी के 2.5 फीसद थे।

 सामने आए अहम तथ्य

 रिसर्च में चौकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इसमें यह देखा गया कि अप्रैल-मई में सर्वाधिक 60 फीसद सीओपीडी के गंभीर मरीज लंग्स अटैक के साथ आए, जबकि सबसे कम मरीज मार्च में 32.5 फीसद आए। इसकी वजह स्पष्ट नहीं थी। पहले सीओपीडी के गंभीर मरीज दिसंबर से जनवरी के बीच आते थे, जिसकी वजह कड़ाके की ठंड और वातावरण में बढ़ा प्रदूषण होता था। वहीं वायरल इंफेक्शन के सर्वाधिक मरीज मार्च में सर्वाधिक 26 फीसद और सबसे कम अक्टूबर में आए। वहीं दमा के सर्वाधिक मरीज दिसंबर में 23 फीसद और सबसे कम जुलाई में आए।

यह हैं आंकड़े

 सीओपीडी के मरीज : जुलाई में 50 फीसद, अगस्त में 43 फीसद, सितंबर में 37 फीसद, अक्टूबर में 51 फीसद, नवंबर में 55 फीसद, दिसंबर में 42.5 फीसद, जनवरी में 51 फीसद, फरवरी में 53 फीसद, मार्च में 32.5 फीसद, अप्रैल में 60 फीसद, मई में 51.5 फीसद, जून में 38.5

 

दमा के मरीज

जुलाई में 2 फीसद, अगस्त में साढ़े पांच फीसद, सितंबर में 15.5 फीसद, अक्टूबर में साढ़े सात फीसद, नवंबर में 12 फीसद, दिसंबर में 23 फीसद, जनवरी में 18.5 फीसद, फरवरी में 10.5 फीसद, मार्च में 13.5 फीसद, अप्रैल में आठ फीसद, मई में 12.5 फीसद।

 वायरल इंफेक्शन के मरीज

जुलाई में 9.5 फीसद, अगस्त में 10.5 फीसद, सितंबर में 14.5 फीसद, अक्टूबर में पांच फीसद, नवंबर में सात फीसद, दिसंबर में 9.5 फीसद, जनवरी में 9.5 फीसद, फरवरी में 14 फीसद, मार्च में 26 फीसद, अप्रैल में 11 फीसद, मई में नौ फीसद, जून में 21 फीसद।

 रिसर्च में इनका भी सहयोग

 जयपुर के अस्थमा भवन के अध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर के रेसपेरेटरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष प्रो. भारत भूषण शर्मा एवं जीएसवीएम के रेसपेरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. आनंद कुमार। वहीं रिसर्च डाटा का एनलिसिस डॉ. अजय भगोलीवाल ने किया।

 

एक साल की रिसर्च में सामने आया है कि मौसम के हिसाब से बीमारियों के प्रकार और समयावधि बदल रही है, जो गंभीर है। इस पर राष्ट्रीय स्तर पर विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। फिर शोध का दूसरा चरण शुरू करेंगे। फिलहाल आमजन को वायरल एवं अन्य संक्रमण से बचने के लिए हर साल अगस्त-सितंबर तक फ्लू का टीकाकरण जरूर कराएं, ताकि तमाम संक्रमण से बचाव हो सके।

 

- प्रो. सुधीर चौधरी, मुख्य शोधकर्ता, रेस्पेरेटरी मेडिसिन विभाग, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज।

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