संपादकीय

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संपादक की कलम से....



गणेश शंकर विद्यार्थी अखबार निकालते थे, पर उनके पास दूसरे काम भी थे। मसलन, हिन्दू-मुसलिम एकता के लिए लड़ना और उसके लिए कुर्बान हो जाना। आज  अखबार और चैनल वालों के दूसरे काम कौन-कौन हैं? एक-दो को छोड़ दें तो लगभग सभी मीडिया टाइकूनों के दूसरे काम ही मुख्य हो गए हैं। चैनल और अखबार तो वे चापलूसी के लिए निकालते हैं। इस ओछे काम से विज्ञापन के रूप में उन्हें पैसे भी मिलते हैं।
तरह-तरह के चैनल और तरह-तरह के अखबार। और, अब तो लाखों न्यूज़ पोर्टल और सोशल मीडिया के करोड़ों एक्टिविस्ट भी साइबर स्पेस में विचरण कर रहे हैं। एक टीवी एंकर कहता है कि टीवी न्यूज़ देखना बंद कर दो। दूसरे टीवी चैनलों में मरकज़, मुसलमान और महामारी को लेकर मारकाट मची है। बहस का स्तर यह है कि मां-बहन की गलियां ही बची हैं, पता नहीं कब तक!
पाठक और दर्शक भी भूल गए हैं सत्य क्या है, यह पोस्ट ट्रुथ का दौर है। अब हक़ीक़त वह नहीं होती जो हुआ है, बल्कि वह जो श्रीमुख से निकले। इन्हीं हालात के बीच हम आपके सामने 'प्रारब्ध' लेकर आए हैं। यह न्यूज़ पोर्टल सच बोलने के लिए आया है। हमारा ध्येय वाक्य है : सच, सच और सिर्फ सच। कुछ हंसना-हंसाना भी होगा, लेकिन लम्पटीय सुख प्रदान करने का काम हम नहीं करेंगे। इसलिए, डर्टी पिक्चर टाइप एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट चाहने वाले इधर रुख न करें।
समाचारों के अलावा हम साइंस-टेक्नोलॉजी, खेलकूद, साहित्य, इकॉनमी और धर्म-अध्यात्म का मंच भी हम प्रदान करेंगे। हमने एक अत्याधुनिक स्टूडियो भी बनाया है ताकि पाठकों को उच्चस्तरीय वीडियो भी दिखा सकें।

अंत में, हम प्रारब्ध की टीम शपथ लेते हैं :

- हम सदा सच लिखेंगे/बोलेंगे।
- समाचार लेखन में निजी भावनाएं न आने देंगे।
- हम विज्ञापन की तरफ नहीं भागेंगे।
- कुछ ज़रूरत होने पर पाठकों से ही अपील करेंगे।

- अजय शुक्ल

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